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कभी आका कभी सरकार लिखना / सर्वत एम जमाल
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15:58, 5 सितम्बर 2010
गली कूचों में रह जाती हैं घुट कर
अब
अफवाहें
अफ़वाहें
सरे बाज़ार लिखना
तमाचा-सा न जाने क्यों लगा है
अनिल जनविजय
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