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इसी क्षण / मुकेश मानस

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दीर्घ ये जीवन तुम्हारा
और तुम्हारे दीर्घ जीवन का ये क्षण
क्षणिक क्षण

ये क्षण ही वर्तमान है
ये क्षण ही जीवन है
ये क्षण ही तुम हो

इसी एक क्षण
कोई गा रहा है
तुम्हारे भीतर
कितनी मीठी
कितनी मधुर
कितनी सुरीली आवाज़ में

ये आवाज़
तुम्हारे भीतर से बोल रही है
जो तुम्हें खोल रही है
किसकी है ये आवाज़?

जीवन की आपा-धापी
और बाहर के शोर में
तुमने इसे कभी सुना ही नहीं
इतनी सुंदर
इतनी मधुर
इतनी सहज और सरल आवाज़
कहीं तुम्हारी ही तो नहीं है
जिसे अनसुना किया है
तुमने सदा

देखो अपने भीतर
वहाँ खिल रहा है एक फूल
अनन्त पंखुड़ियाँ फैलाता
अनन्त गंध बिखेरता हुआ
अनन्त रंग खिलाता हुआ
इस अनन्त वसुंधरा पर
अनन्त सौंदर्य
अनन्त प्रफुल्लता
और अनन्त ऊर्जा बिखेरता हुआ

ये फूल
कहीं तुम ही तो नहीं हो
जिसे अनदेखा किया है
तुमने सदा

आज, अभी, इसी क्षण
पूरे ध्यान से
सुनो खुद को
देखो खुद को

तुम सुंदर हो
तुम सरल हो
तुम सहज हो
हवा,पानी,रौशनी
खुशबू और रंग की तरह
प्रेम और करुणा से भरे तुम
एक जाग्रत इंसान हो

दीर्घ जीवन के
इस क्षणिक क्षण में
यही तुम्हारा सहज, स्वाभाविक रूप है
2007
<poem>
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