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परछाई / गोबिन्द प्रसाद

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<poem>

बूढ़ा ख़ुश था
पुल पर खड़ा हुआ
अपनी परछाईं को ज्यों की त्यों देख कर
-पानी में
तभी एक लड़का
आया । और उस ने
ढेला दे मारा...

अब बूढ़े की उदास परछाइयाँ
काँप रही थीं
लड़के की आँखों में
-पानी में नहीं
लेकिन अभी लड़का
उस बूढ़े की तरह ख़ुश नहीं था
और न ही वह अपनी परछाईं
-देख रहा था पानी में
वह तो केवल उन परछाइयों से लड़ रहा था

<poem>
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