1,205 bytes added,
11:08, 8 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कभी तुम्हारा चेहरा आईना था
जिसकी लकीरों का तुमुलनाद
दु:खों के पहाड़ों-सा
मेरी भीतरी नदी के थपेड़ों से
टकराकर गलता था
...दर्द,रिस रिस कर होता जाता था
दीप्त दिनो-दिन
आज भी वही चेहरा है
वही लकीरें हैं ...
वही दु:ख हैं ...
वही पहाड़ हैं ।...दोस्त;
नहीं है तो बस वह भीतरी नदी
जिसने दु:ख के पहाड़ों को गला दिया था
दर्द को दीप्ति दी थी
तुम्हारा चेहरा अब भी
आईना है ...दोस्त ।
मेरी नदी सूख चुकी है !
<poem>