Changes

गेह / गोबिन्द प्रसाद

1,395 bytes added, 11:41, 8 सितम्बर 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद |संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>

इस निजन्धरी मकान के
किसी कोने में
भूल गया बचा कर
- थोड़ा सा उजाला

कई छोटी छोटी उम्र
जीते हैं; भटक कर
याद में नहीं उतरता;वह उजाला

लौट आते हैं स्वप्न में जागकर
कभी देह के उस द्वार पर
जहाँ से देख भर लेते हैं; वह उजाला

उजाला जैसे
समुद्र में चट्टा नवत्‍ कोई चेहरा
काँपती लहरियों पर
निष्कम्प लौ सा
काल के अश्व पर सवार
दिशाओं मे छेड़ जाता भोर का अभियान

उजाला-
जिस में कौंधती है तड़ित बन
कविता की कोई पंक्ति
लड़ते रह्ते हैं हम
जिस की बिना पर जीवन से तमाम उम्र

<poem>
681
edits