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आत्मकथ्य / जयशंकर प्रसाद
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00:56, 10 सितम्बर 2010
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिलाकर
हँसते
हँसतने
वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देकर जाग गया।
Shuklaalok7
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