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आत्मराग-एक / गोबिन्द प्रसाद

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<poem>

सब ने सब का खाया
अपना अपना गुन गाया
कोई किसी को भाया

ना कोई पेड़
ना कोई साया
ना कोई गया ना कोई आया
कैसा दीन
कैसी दुनिया
कैसा जगत है कैसी माया!
<poem>
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