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उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब / राहत इन्दौरी
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10:42, 15 सितम्बर 2010
मुझसे बिछड़ कर वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
आखिर मै किस दिन दुबुन्गा फिक्रें करते है
कश्ती, वश्ती, दरिया वरिया लंगर वंगर सब
Sagarprateek
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