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कुदरत की लेखनी--ग़ज़ल / मनोज श्रीवास्तव
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10:55, 17 सितम्बर 2010
कुहासों के न्योते पर, ज़फाओं के सोते पर
यहां सर्द दिल का शहर लिख रही हो.
हवाई पोशाकों से बदलते इलाकों से
युगों के निखरने का भ्रम लिख रही हो.
पहाड़ों के घेरे हैं, सहरों के डेरे हैं,
Dr. Manoj Srivastav
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