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काफ़ी नहीं तुम्हारा / शेरजंग गर्ग
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|संग्रह=क्या हो गया कबीरों को / शेरजंग गर्ग
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<poem>
काफ़ी नहीं तुम्हारा ईमानदार होना
उल्लू से दोस्ती कर क्या शर्मसार होना
लँगड़ा रही है भाषा, कितना
अज़ब
अजब
तमाशा
घटिया तरीन जी के उँचे विचार होना
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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