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15:04, 18 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
'''अपने मुंह मियाँ मिट्ठू यह मिसाल अब भी है
किस तरफ उजालों की देखभाल अब भी है
सिर्फ चेहरा बदला है सच पसंद लोगो का
जो सवाल पहले था वो सवाल अब भी है
ढोल पीटते रहिये फ़ायदा हुआ कितना
शहर में गुलामी तो खाल खाल अब भी है
खेत भी है, फसल भी, अब्र भी है बारिश भी
फिर भी लोग भूखे हैं, क्या अकाल अब भी है
वरना मैं भी सूरज से थोड़ी धूप ले लेता
मेरे खून में शायद कुछ उबाल अब भी है'''</poem>