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<poem>
चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत है
करें क्या हम कि क्या करें हमें दू्सरे की आदत है
तू अपनी शीशा-गरी का हुनर न कर ज़ाया<ref>व्यर्थ</ref>
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