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चलो इश्क़ नहीं चाहने की आदत है / फ़राज़
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10:33, 19 सितम्बर 2010
<poem>
चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत है
करें क्या हम
कि
क्या करें
हमें दू्सरे की आदत है
तू अपनी शीशा-गरी का हुनर न कर ज़ाया<ref>व्यर्थ</ref>
Bohra.sankalp
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