1,253 bytes added,
12:36, 19 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna}}
रचनाकार=सर्वत एम जमाल
संग्रह=
}}
{{KKCatGazal}}
<poem>
हम तो सदियों से शोषित हैं
आतंकित थे, आतंकित हैं
क्रांतिबीज बोने निकले थे
हम समझे मुर्दे जीवित हैं
हैं जितने भी हंसते चेहरे
सच बतलाऊँ सब पीड़ित हैं
बंधन टूटे, युग बीता पर
आँखें अब तक सम्मोहित हैं
सदियों पहले घात लगी थी
लोग अभी तक आशंकित हैं
अपनी चिंता है पिछड़ापन
आप सुधारों पर चिंतित हैं
अंतरिक्ष तक दुनिया है, हम
सिर्फ कुँए तक ही सीमित हैं
सूरज को यह कौन बताए
आज अँधेरे अनुशासित हैं</poem>