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06:41, 21 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
पर्वतों से उतर गई है हवा
जाने अब किस नगर गई है हवा
झील पहले तो साफ़ रहती थी
अब के कुछ रेत भर गई है हवा
मुंह के बल गिर पड़े हैं सरे दरख़्त
काम ही ऐसा कर गई है हवा
फिर घुटन क्यों सवार है सब पर
शहर में आज अगर गई है हवा
जब से गुज़री है शहर से होकर
लोग कहते हैं डर गई है हवा
पेड़-पौधों को इसका इल्म नहीं
आज किस किस के घर गई है हवा
आसमां से जमीं तक आने में
देख सर्वत बिखर गई है हवा</poem>