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है तो है (ग़ज़ल) / दीप्ति मिश्र

No change in size, 07:25, 22 सितम्बर 2010
जल गया परवाना तो शम्मा की इसमे क्या खता
रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत क़िस्मत है तो है
दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनोंज़मीनो-आसमाँ
दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है
</poem>
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