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त्रिवेणी 1 / गुलज़ार

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सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
रूह ? अपनी भी किसने देखी है!   क्या पता कब, कहाँ से मारेगी बस कि मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ मौत का क्या है, एक बार मारेगी  उठते हुए जाते हुए पंछी ने बस इतना ही देखादेर तक हाथ हिलाती रही वो शाख़ फ़िज़ा में  अलविदा कहने को, या पास बुलाने के लिए?
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