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13:48, 23 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शहरयार
|संग्रह=सैरे-जहाँ / शहरयार
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<poem>
तुझको खोकर क्यों ये लगता है कि कुछ खोया नहीं
ख़्वाब में आएगा तू, इस वास्ते सोया नहीं
आप बीती पर जहाँ हँसना था जी भर के हँसा
हाँ जहाँ रोना ज़रूरी था वहाँ रोया नहीं
मौसमों ने पिछली फ़स्लों की निगह्बानी न की
इसलिए अबके ज़मीने-दिल में कुछ बोया नहीं
वक़्त के हाथों में जितने दाग़ थे सब धो दिए
दाग़ जो तुझसे मिला है इक उसे धोया नहीं
कैसी महफ़िल है यहाँ मैं किस तरह आ गया
सबके सब ख़ामोश बैठे हैं कोई गोया नहीं
</poem>