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13:51, 23 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|संग्रह=सैरे-जहाँ / शहरयार
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<poem>
चाहता कुछ हूँ मगर लब पे दुआ है कुछ और
दिल के अतराफ़ की देखो तो फ़ज़ा है कुछ और
जो मकाँदार हैं दुनिया में उन्हे क्या मालूम
घर की तामीर की हसरत का मज़ा है कुछ और
जिस्म के साज़ पे सुनता था अजब सा नग़मा
रूह के तारों को छेड़ा तो सदा है कुछ और
पेशगोई पे नजूमी की भरोसा कैसा
वक़्त के दरिया के पानी पे लिखा है कुछ और
तू वफ़ाकेश है जी-जान से चाहा है तुझे
तेरे बारे में पर लोगों से सुना है कुछ और
</poem>