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एक और दिन / गुलज़ार

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|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
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<poem>
खाली डिब्बा है फ़क़त, खोला हुआ चीरा हुआ
यूँ भी होता है कोई खाली-सा- बेकार-सा दिन
ऐसा बेरंग-सा बेमानी-सा बेमानबेनाम-सा दिन
</poem>