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मुन्द्रे / गुलज़ार
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09:45, 24 सितम्बर 2010
नीले-नीले से शब के गुम्बद में
तानपुरा मिला रहा है कोई
एक शफ्फाफ़
कांह
काँच
का दरिया
जब खनक जाता है किनारों से
देर तक गूँजता है कानो में
और फ़ानूस गुनगुनाते हैं
मैंने मुन्द्रों की तरह कानो में
तेरी आवाज़
पेहें
पहन
रक्खी है
</poem>
Abha Khetarpal
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