गनीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी
कि हार मान ली, लेकिन मदद नहीं माँगी
हजार शुक्र कि हम अहले-हर्फ़-जिन्दा ने
मुजाविराने-अदब से सनद नहीं माँगी
बहुत है लम्हा-ए-मौजूद का शरफ़ भी मुझे
सो अपने फ़न से बकाये-अबद नहीं माँगी
कबूल वो जिसे करता वो इल्तिजा नहीं की
दुआ जो वो ना करे मुस्तरद, नहीं माँगी
मैं अपने जाम-ए-सद-चाक से बहुत खुश हूं
कभी अबा-ओ-कबा-ए-खिरद नहीं माँगी
शहीद जिस्म सलामत उठाये जाते हैं
तभी तो गोरकनों से लहद नहीं माँगी
मैं सर-बरहना रहा फ़िर भी सर कशीदा रहा
कभी कुलाह से तौकीद सर नहीं माँगी
अता-ए-दर्द में वो भी नहीं था दिल का गरीब
फ़राज मैनें भी बख्शिश में हद नहीं माँगी
</poem>