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16:47, 26 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राहत इन्दौरी
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो न
बाबा मेरे नाम का बादल भेजो न
मोल्सरी की शाख़ों पर भी दिये जलें
शाख़ों का केसरया आँचल भेजो न
नन्ही मुन्नी सब चेहकारें कहाँ गईं
मोरों के पैरों की पायल भेजो न
बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है
गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो न
सारे मौसम एक उमस के आदी हैं
छाँव की ख़ुश्बू, धूप का संदल भेजो न
मैं बस्ती में आख़िर किस से बात करूँ
मेरे जैसा कोई पागल भेजो न
<poem>