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इक तेरे 'ना' कहने से अब कुछ बदल सकता नहीं
मैं सिपाही-सा डटा हूँ मोरचे पर, गौर कर  ''{त्रैमासिक शेष, जुलाई-सितम्बर 2009}''</poem>
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