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|रचनाकार=रविकांत अनमोल
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उसे मस्जिद बनानी है इसे मंदिर बनाना है
मुझे बस एक चिंता,कैसे अपना घर चलाना है

सियासी लोग सब चालाकियों में हैं बहुत माहिर
इन्हें मालूम है कब शाहर में दंगा कराना है

किसी का ख़ाब है मां-बाप को कुछ काम मिल जाए
किसी की सोच है बेटे को सिंहासन दिलाना है

भले अल्लाह वालों का हो झगड़ा राम वालों से
मगर पंडित का मौलाना का यारो इक घराना है

लड़ाई धर्म पर हो, जात पर हो या कि भाषा पर
लड़ाई हो! सियासत का तो बस अब ये निशाना है

</poem>
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