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परिंदे / लीलाधर मंडलोई

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परिंदों की तरह
सफर में रहने वाले
ये मजूर

आज इतवार को रूके हैं
उस नीलगूं तलहटी में
वहां दहक रहा है अलाव

आग के चारों तरफ
मदमस्‍त होकर नाच-गा रहे हैं

ये परिंदे आज पिकनिक मना रहे हैं
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