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08:10, 29 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
हम डरते हैं जिस समन्दर से
मछलियां
उसी से इश्क करती हैं
मछलियां
कितनी छोटी सामने उसके
यहां तक कि विशालकाय व्हेल भी
इश्क की कोई सीमा नहीं