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08:23, 29 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
भेड़ की खाल की
सुगन्ध के बारे में
जानता है कर्मकार
मदमस्त हो उठता है उसमें
भेड़ का कोट पहनने वाले
उस सुगन्ध का पता
खोजते रहते हैं जीवन भर