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08:28, 29 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
रेत के सजीले घरधूले
बनाए जिन्हें हमने
बचपन में
तोड़े अपनों ने
कभी सनक में
कभी अनजाने
इस तरह जाना हमने
घरों के टूटने का सच