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14:19, 29 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|संग्रह=सैरे-जहाँ / शहरयार
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<poem>
जहाँ तक होगा जब तक होगा दिल बहलाएँगे हम भी
किसी दिन तो तुझे भूले से याद आजाएँगे हम भी
करेंगे हम कहाँ तक दूर की आवाज़ का पीछा
अभी एक मोड़ ऐसा आएगा पछताएँगे हम भी
कहीं भी ज़ीस्त के आसार दिखलाई नहीं देते
यही सूरत रही जो चंद दिन, घबराएँगे हम भी
अज़ब वहशत थी, घर के सारे दरवाज़े खुले रक्खे
हमें मालूम था इक रोज़ धोका खाएँगे हम भी
उस इक लम्हे के आने तक ग़मों को मुल्तवी रक्खें
वफ़ाएँ करके अपनी याद जब पछताएँगे हम भी
</poem>