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10:43, 1 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
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<poem>
''' कलकत्ता-२०१० '''
ऐ मेरी उम्मीद के ख्वाबों के शहर
मेरी आँखों की चमक,
आने वाले ख़ूबसूरत रोजो-शब के ऐ अमीं
सुन की अब मख्लूक तुझसे खुश नाहीं
मेरे हक में ये सज़ा तजबीज बस होने को है
मैं तुझे वीरान होते देखने के वास्ते
और भी कुछ दिन अभी ज़िंदा रहूँ.