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10:26, 4 अक्टूबर 2010 इस मौसम की
बात न पूछो
लोग हुए बेताल से।
भोर नहायी
हवा लौटती
पुरइन ओढ़े ताल से।
चप्पा चप्पा
सजा धजा है
संवरा निखरा है
जाफरान की<br />
खुश्बू वाला<br />
जूड़ा बिखरा है<br />
एक फूल<br />
छू गया अचानक<br />
आज गुलाबी गाल से ।<br />
आंखें दौड <br />
रही रेती में<br />
पागल हिरनी सी,<br />
मुस्कानों की<br />
बात न पूछो<br />
जादूगरनी सी,<br />
मन का योगी<br />
भटक गया है<br />
फिर पूजा की थाल से<br />
सबकी अपनी<br />
अपनी जिद है<br />
शर्तें हैं अपनी,<br />
जितना पास<br />
नदी के आये<br />
प्यास बढ़ी उतनी,<br />
एक एक मछली<br />
टकराती जानें<br />
कितने जाल से।