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09:26, 10 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
}}
<poem>
बीस साल बाद
मिले
उसका दुख
मेरा दुख
दुखों के चेहरों पर
झुर्रियाँ हैं अब
पके बाल इधर उधर
अहं और सन्देह ने किया घर
दुखों को यूँ मिलते देख
ढूँढा उसके गुस्से ने मेरे गुस्से को
उसके प्यार ने मेरे बचे प्यार को
हम लोग हिसाब किताब कर रहे
घर-परिवार का
दुख हमारे लेट गए
आपस को सहलाते
धीरे-धीरे सुखों में बदलते
अचानक हम जान रहे
दुनिया में बदला है बहुत कुछ बीस सालों में.