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09:35, 10 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
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<poem>
सड़क रेंगती है उसने कहा और याद किया अपना शहर.
सड़क कुछ आगे कुछ पीछे निकल गई
उसने मूँगफली चबाई, सड़क ने छिलका देखा और ले गई.
टूटे छिलके पर उसका स्पर्श धुँधला हो रहा था
जैसे स्मृति में धुँधला हुआ अपना शहर.
अपने शहर में सड़कों को रेंगते नहीं देखा था, वहाँ मूँगफली के छिलके
होते पैरों की उँगलियों पर जब तक हवा न चलती.
रेंगती सड़क पर हवा थी निष्प्राण जितनी भूली हुई चिड़ियाँ.
हर कोई खोया हुआ. किसी को काम की, किसी को काम के दाम की,
अलग अलग थे तलाश में लोग सड़क पर.
धूप देखती पूछ लेती कभी स्मृति से कितनी जगह थी बची वहाँ.
एक दिन वह और सड़क एक दूसरे में विलीन हो गए, धूप उन पर बिछ गई
चिड़ियों ने गाए शोक-गीत.