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सात कविताएँ-5 / लाल्टू

38 bytes added, 06:30, 11 अक्टूबर 2010
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
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वह जो मेरा है
मेरे पास होकर भी मुझ से बहुत दूर है.पास आने के मेरे उसके खयालख़याल
आश्चर्य का छायाचित्र बन दीवार पर टँगे हैं,
द्विआयामी अस्तित्व में हम अवाक देखते हैं
हमारे बीच की ऊँची दीवार.
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम
उँगलियाँ छूती हैं
स्पर्श पौधा बन पुकारता है
स्पर्श ही अल्लाह, स्पर्श ही ईश्वर.</poem>
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