|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
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मुड़-मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ ।
सन् 2000 में वह, मेरी दाढ़ी खींचने पर धू-धू लपटें उसे घेर लेंगीं ।
मेरी नियति पहाड़ बनने के अलावा और कुछ नहीं ।
उसकी खुली आँखों को सिरहाने तले सँजोता हूँ ।
उड़नखटोले पर बैठते वक़्त वह मेरे पास होगा ।
मुड़ मुड़ उसके लिए दढ़ियल बरगद बनने की प्रतिज्ञा करता हूँ.सन् 2000 में वह मेरी दाढ़ी खींचने पर धू धू लपटें उसे घेर लेंगीं.मेरी नियति पहाड़ बनने के अलावा और कुछ नहीं.उसकी खुली आँखों को सिरहाने तले सँजोता हूँ.उड़नखटोले पर बैठते वक्त वह मेरे पास होगा. युद्ध सरदारों सरदारो, सुनो! मैं उसे बूँद -बूँद अपने सीने में सींचूँगा.। उसे बादल बन ढँक लूँगा. । उसकी आँखों में आँसू बन छल -छल छलकूँगा.।उसके होंठों में विस्मय की ध्वनि तरंग बन बजूँगा। बजूँगा । तुम्हारी लपटों को मैं लगातार प्यार की बारिश बन बुझाऊँगा.।</poem>