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मीर / आलोक धन्वा

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|रचनाकार = आलोक धन्वा
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मीर पर बातें करो
तो वे बातें भी उतनी ही अच्छी लगती हैं
जितने मीर

और तुम्हारा वह कहना सब
दीवानगी की सादगी में
दिल-दिल करना
दुहराना दिल के बारे में
ज़ोर देकर कहना अपने दिल के बारे में कि
जनाब यह वही दिल है
जो मीर की गली से हो आया है।


(1996)
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