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07:23, 11 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = आलोक धन्वा
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<poem>
कितने दिनों से रात आ रही है
जा रही है पृथ्वी पर
फिर भी इसे देखना
इसमें होना एक अनोखा काम लगता है
मतलब कि मैं
अपनी बात कर रहा हूँ।
(1996)