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14:21, 11 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ज़िन्दगी यूँ थी कि जीने का बहाना तू था
हम फ़क़त जेबे-हिकायत थे फ़साना तू था
हमने जिस जिस को भी चाहा तेरे हिज्राँ में वो लोग
आते जाते हुए मौसम थे ज़माना तू था
अबके कुछ दिल ही ना माना क पलट कर आते
वरना हम दरबदरों का तो ठिकाना तू था
यार अगियार कि हाथों में कमानें थी फ़राज़
और सब देख रहे थे कि निशाना तू था
</poem>