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रचनाकार=संजय मिश्रा शौक
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<poem>

कुछ तो मिला है आँखों के दरिया खंगाल के
लाया हूँ इनसे फिक्र के मोती निकाल के

हमने भी ढूंढ ली है जमीं आसमान पर
रखना है हमको पाँव बहुत देखभाल के

बच्चा दिखा रहा था मुझे जिन्दगी का सच
कागज़ की एक नाव को पानी में डाल के

उम्मीद के दिए में भरा सांस का लहू
जंगल सा एक ख्वाब का आँखों में पाल के

बुझते हुए दीयों को पिलाया है खूने-दिल
मिलते कहाँ हैं लोग हमारी मिसाल के </poem>