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18:34, 16 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=संजय मिश्रा शौक
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<poem>
अम्न की दीवार में दर हो गये
जंग-जू जब से कबूतर हो गये
आज फिर पानी गले तक आ गया
हाथ अपने आप ऊपर हो गये
मैं भिकारी हो गया तो क्या हुआ
मांगने वाले तवंगर हो गये
दीद-ए-नमनाक से आंसू गिरे
और चकनाचूर पत्थर हो गये
शौक इन आँखों का है सारा कुसूर
जागते ही ख्वाब बेघर हो गये</poem>