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04:08, 21 अक्टूबर 2010 कभी मूरत कभी सूरत से हमको प्यार होता है<br />
इबादत में मुहब्बत का ही इक विस्तार होता है।<br />
हम करवाचौथ के व्रत को मुकम्मल मान लेते हैं<br />
जमीं के चांद को जब चांद का दीदार होता है।<br />
पुजारिन बनके पतियों की उमर की कामना करतीं,<br />
सुहागिन औरतों का इससे बेड़ा पार होता है।<br />
तुम्हें ऐ चांद हिन्दू देख लें तो चौथ होता है,<br />
मुसलमां देख लें तो ईद का त्यौहार होता है।<br />
यही वो चांद है बच्चे जिसे मामा कहा करते,<br />
हकीकत में मगर रिश्तों का भी आधार होता है।<br />