<poem>
बुतों के ज़र्द पैराहन<ref>वस्त्र</ref> में इत्र चम्पा जब महका ।
हुआ नक़्शा अयाँ होली की क्या-क्या रस्म और रहका रह<ref>तौर-तरीकों</ref> का ।।१।।
गुलाल आलूदः<ref>गुलाल लगे हुए</ref> गुलचहरों के वस्फ़े रुख<ref>अच्छॆ चेहरों और कपोलों</ref> में निकले हैं ।
मज़ा क्या-क्या ज़रीरे कल्क<ref>दग्ध और बेचैन</ref> से बुलबुल की चहचहका चह-चह का ।।२।।
गुलाबी आँखड़ियों के हर निगाह से जाम मिल पीकर ।