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दस मुक्तक / गिरिराज शरण अग्रवाल

435 bytes removed, 06:50, 25 अक्टूबर 2010
नहीं सीखा है तुमने मित्र, सच के रू-ब-रू होना
तुम आँखें मूँद भी लोगे तो क्या सूरज का बिगड़ेगा
 
'''11.
प्यार की दुनिया जो थी, व्यापार की दुनिया है
अब ज्ञान की पूँजी भी कारोबार में शामिल हुई
यह ज़रूरी तो नहीं है, साफ़-सुथरी ही मिले
सूचना, उपभोक्ता बाज़ार में शामिल हुई
</poem>
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