{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
|संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं / केदारनाथ अग्रवाल; कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह / केदारनाथ अग्रवाल
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
हँस रहा है उधर
धूप में खड़ा पूरा पहाड़
खोल कर मोटे बड़े होंठ ।
::और चट्टानी जबड़े ।
रो रहा है इधर
शोक में पड़ा जन-समुदाय
काट कर कामकाजी हाथ
::तोड़ कर छाती तगड़ी ।
'''रचनाकाल::तोड़ कर छाती तगड़ी ।१०-०९-१९६२'''</poem>