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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>

ना रहित झाँझर मड़इया फूस के
घर में आइत घाम कइसे पूस के



के कइल चोरी, पता कइसे लगी
चोर जब भाई रही जासूस के



आज ऊ लँगड़ो दरोगा हो गइल
देख लीं, सरकार जादू घूस के



ख्वाब में भलही रहे एगो परी
सामने चेहरा रहे मनहूस के



जे भी बा, बाटे बनल बरगद इहाँ
पास के सब पेड़ के रस चूस के



तूहीं ना तऽ जिन्दगी में का रही
छोड़ के मत जा ए 'भावुक' रूस के

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