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09:03, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
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हजारो गम में रहेले माई
तबो ना कुछुओ कहेले माई
हमार बबुआ फरे-फुलाये
इहे त मंतर पढेले माई
हमार कपडा, कलम आ कॉपी
सँइत-सँइत के धरेले माई
बनल रहे घर, बँटे ना आँगन
एही से सभकर सहेले माई
रहे सलामत चिराग घर के
इहे दुआ बस करेले माई
बढे उदासी हिया में जब-जब
बहुत-बहुत मन परेले माई
नजर के काँटा कहेलीं रउरा
जिगर के टुकडा कहेले माई
'मनोज' हमरा हिया में हरदम
खुदा के जइसन रहेले माई
<poem>