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09:09, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
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दुख-दरद या हँसी या खुशी, जे भी दुनिया से हमरा मिलल
ऊहे दुनिया के सँउपत हईं, आज देके गजल के सकल
जब भी उमड़ल हिया के नदी, प्यार से, चोट से, घात से
बाढ़ के पानी भरिये गइल मन के चँवरा में बनके गजल
रात के कोख में बाटे दिन, दिन के भीतर छुपल बाटे रात
गम के भीतर खुशी बा अउर हर खुशी लोर में बा सनल
बात मानऽ ना मानऽ मगर कुछ ना कुछ बात बाटे तबे
पाँव में हमरा काँटा चुभल, दर्द तहरा हिया में उठल
हम त 'भावुक', गजल-गीत में, छंद के बंध में बंद हो
बात कहलीं बहुत कुछ मगर बा बहुत कुछ अभी अनकहल
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