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09:14, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
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शेर जाल में फँस जाला तऽ सियरो आँख देखावेला
बुरा वक्त जब आ जाला तऽ अन्हरो राह बतावेला
कबो-कबो होला अइसन जे छोटके कामे आवेला
देखीं ना, सागर, इनार में, इनरे प्यास बुझावेला
सूरज से ताकतवाला के बाटे दुनिया में , बाकिर
धुंध, कुहासा, बदरी, गरहन उनको ऊपर आवेला
कबो-कबो होला अइसन जे सोना उहँवे निकलेला
बदगुमान में लोग जहाँ पर लात मार के आवेला
पास रहेलऽ तब तऽ तहरा से होला रगड़ा-झगड़ा
दूर कहीं जालऽ तऽ काहे तहरे याद सतावेला
पटना से दिल्ली, दिल्ली से बंबे, बंबे से पूना
'भावुक' हो आउर कुछुवो ना, पइसे नाच नचावेला
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