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09:29, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
अमन वतन के बनल रहे बस
हवा में थिरकन बनल रहे बस
इहे बा ख्वाहिश वतन के धरती
वतन के कन-कन बनल रहे बस
हजार गम भी सहे के दम बा
तोहार चाहत बनल रहे बस
बनल रहीं हम हिया में तहरा
हिया के धड़कन बनल रहे बस
रहे न केहू वतन में बेघर
रहे न केहू वतन में भूखा
सभे के रोटी, सभे के कपड़ा
सभे के जीवन बनल रहे बस
नजर में देखत पता लगा लीं
कि उनका मन के हिसाब का बा
इहे तमन्ना बा आखिरी बस
नजर के दरपन बनल रहे बस
हजार सपना सजा के मन में
निकल पड़ल बा सफर में 'भावुक'
सफर के मंजिल मिले, मिले ना
नयन में सावन बनल रहे बस
<poem>