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रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ।हो गई है पीर पर्वत—सी पिघलनी चाहिए<br>आ फिर इस हिमालय से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ॥ कोई गंगा निकलनी चाहिए<br><br>
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कविता कोश में [[अहमद फ़राज़दुष्यंत कुमार]]
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